धनंजय सिंह ने किया चुनाव लड़ने का ऐलान, अखिलेश से मुलाकात और अचानक हो गई सज़ा


धनंजय सिंह ने पेरिस में की थी तलाकशुदा श्रीकला से तीसरी शादी


दो दिन पहले ही सोशल मीडिया X पर किया था चुनाव में आने का एलान 

जौनपुर। 

17 अक्टूबर 1998 को भदोही जिले की पुलिस ने भदोही-मिर्जापुर बॉर्डर पर चार बदमाशों का एनकाउंटर किया था। जिसमें पुलिस टीम ने दावा किया कि पेट्रोल पंप को लूटने जा रहे बदमाश पुलिस मुठभेड़ में मारे गए, जिसमें पचास हजार का इनामी धनंजय सिंह भी शामिल था। पुलिस की खूब वाह वाही हुई। मगर फिर पुलिस की किरकिरी भी शुरू हो गई। मारे गए जिस शख्स को पुलिस ने धनंजय सिंह बताया था, उसके दावेदार ने कहा यह वह धनंजय सिंह नहीं जिस पर पचास हजार का इनाम था, यह उसका भतीजा धनंजय सिंह है। इसके बाद पुलिस के खिलाफ नारेबाजी हुई, धरना प्रदशर््ान हुआ कि पुलिस ने निर्दोष लोगों को मार गिराया। बता दें कि एनकाउंटर के करीब तीन महीने बाद 11 जनवरी 1999 को धनंजय सिंह ने कोर्ट में सरेंडर कर दिया। धनंजय सिंह ने कोर्ट में सरेंडर किया तो खलबली मच गई। एनकाउंटर करने वाली टीम पर जांच हुई। मानवाधिकार आयोग की सिफारिश पर केस दर्ज हुआ। 34 पुलिस वालों पर केस भी चला, लेकिन बाद में अदालती सुनवाई के बाद कुछ पुलिस कर्मियों की मौत हो गई और जो जिंदा बचे वह बरी कर दिए गए। यहीं से धनंजय सिंह के राजनीतिक सफर की शुरु आत हुई और वह पहली बार 2002 में रारी विधानसभा से निर्दलीय विधायक बने। 2007 में पुन: रारी से विधायक चुने गये। 2009 में बसपा ने उन्हें जौनपुर सदर सीट से अपना लोकसभा प्रत्याशी बनाया और धनंजय सिंह ने भाजपा प्रत्याशी पूर्व केंद्रीय गृह राज्यमंत्री स्वामी चिन्मयानंद, सपा प्रत्याशी यूपी के पूर्व कैबिनेट मंत्री पारसनाथ यादव को करारी शिकस्त देकर लोकसभा में सांसद बनने का सफर तय किया। यही नहीं 2009 के विधानसभा उपचुनाव में धनंजय सिंह ने अपनी ताकत का एहसास दिलाते हुए बसपा के टिकट पर अपने पिता राजदेव सिंह को विधायक बनवा दिया लेकिन 1 अप्रैल 2010 को केराकत थाना क्षेत्र के बेलाव घाट पर टोल टैक्स को लेकर दोहरे हत्याकांड में उनका नाम सामने आया था। इसमें संजय निषाद व नंदलाल निषाद की गोली मारकर हत्या की गई थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने धनंजय सिंह को गिरफ्तार कर जेल भेजवा दिया था। यही वजह थी कि 2014 के लोकसभा चुनाव में उनका बसपा से टिकट गया तो उन्होंने जेल से ही निषाद पार्टी से चुनाव लड़ने का एलान किया था। जमानत पर रिहा होने के बाद वे चुनाव लड़े पर जीत न सके। यही नहीं 2017 में परिसीमन के बाद रारी विधानसभा बदलकर मल्हनी विधानसभा हो गई और पारसनाथ यादव ने उन्हें शिकस्त दी थी। पूर्व कैबिनेट मंत्री पारसनाथ यादव के निधन के बाद वर्ष 2020 में हुए उप चुनाव में सपा प्रत्याशी लकी यादव ने उन्हें शिकस्त दी और 2022 के विधानसभा चुनाव में भी लकी यादव ने उन्हें एक बार पुन: शिकस्त दिया। वर्ष 2022 में धनंजय सिंह अपनी पत्नी श्रीकला सिंह को न सिर्फ जिला पंचायत सदस्य बनाया बल्कि अपने सियासी रसूख व रणनीति के दम पर निर्दल जिला पंचायत अध्यक्ष बनाकर प्रदेश की सियासत में अपना लोहा मनवा दिया था। ऐसे में पूर्व सांसद धनंजय सिंह 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी लगातर कर रहे थे और जनता दल यू के राष्ट्रीय महासचिव पद पर रहते हुए वे जनता की समस्याओं का निदान करने में जुटे थे।

बिहार की राजनीति मे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जब राजदा से अपना नाता तोड़कर भाजपा से हाथ मिलाया तो यहां की सियासत भी बदल गई और धनंजय सिंह को राष्ट्रीय महासचिव पद से हटा दिया गया ऐसे में वे इस प्रयास में थे कि भाजपा यह सीट जदयू के लिए छोड़ दे पर पूर्व गृह राज्यमंत्री कृपाशंकर सिंह का नाम भाजपा ने जब घोषित किया तो वे समाजवादी पार्टी से टिकट के लिए प्रयास करते नजर आये लेकिन बुधवार को जब नमामि गंगे के प्रोजेक्ट मैनेजर का अपहरण और बंधक बनाने के मामले में धनंजय सिंह को दोषी करार देने के बाद सात साल की सुना दी तो उनके सियासी सफर पर फिलहाल विराम लग गया है। अब धनंजय सिंह को हाईकोर्ट अथवा सुप्रिमकोर्ट से राहत मिलने के बाद ही सियासत की पारी खेलने का मौका मिल सकेगा।

सै.हसनैन कमर दीपू की विशेष रिपोर्ट 

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