जौनपुर
वर्तमान समय की सबसे बड़ी समस्या है कि जब किसी पुरुष के साथ होने वाले अत्याचार की दर्दनाक कहानी सामने आती है हाल ही में बेंगलुरु के एक होनहार इंजीनियर अतुल सुभाष की खुदकुशी ने इस बहस को फिर से हवा दे दी है उक्त प्रकरण पर आशुतोष त्रिपाठी ने अपना विचार दिया कि अगर किसी पुरुष के साथ गलत दुर्व्यवहार झूठे मुकदमे बड़ी घरेलू कलह और ससुराल पक्ष के उत्पीड़न से परेशान होकर कोई पुरुष कहां पर जाए मगर पुरुषों पर हो रहे अत्याचार की अनदेखी इतनी ज्यादा है कि वह ना तो समाज को और ना ही कानून को दिखाई पड़ती है जिस तरह महिला आयोग ने लाखों महिलाओं को न्याय दिलाने में मदद की है वही क्या पुरुषों के पास भी अपनी बात रखने की कोई मंच होना चाहिएl उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी के आंकड़े के मुताबिक देश में पुरुषों की आत्महत्या की दर महिलाओं की तुलना में दुगुने से भी ज्यादा है इसके पीछे तमाम कारण में पुरुषों का घरेलू हिंसा का शिकार भी होना बताया जाता है 2021 में प्रकाशित या सीआरबी के आंकड़े की माने तो देश भर में 1,64,033 लोगों ने आत्महत्या की इनमें से 81 063 विवाहित पुरुष हैं और 28680 महिलाएं शामिल हैं यह बताया गया है कि 2021 में 33 फ़ीसदी पुरुषों ने पारिवारिक समस्या के कारण और 4.8 फ़ीसदी महिला संबंधी वजह से अपनी जान दे दी थी नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के आंकड़े के मुताबिक 18 से 49 साल की उम्र की 10 फ़ीसदी महिलाओं ने कभी न कभी अपने पति पर हाथ उठाया है वह भी तब जब उनके पति ने उन पर हिंसा नहीं की इसी में 11 फ़ीसदी महिलाएं ऐसी भी हैं जिन्होंने माना था कि बीते 1 साल में उन्होंने पति के साथ हिंसा की 2018 में ही यूपी में भारतीय जनता पार्टी की कुछ सांसदों ने यह मांग उठाई थी कि राष्ट्रीय महिला आयोग की तर्ज पर राष्ट्रीय पुरुष आयोग जैसी भी एक संवैधानिक संस्था बनी चाहिए इन सांसदों ने इस बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भी लिखा था पत्र लिखने पुरुषों के खिलाफ घरेलू हिंसा का मुद्दा सिर्फ भारत की समस्या नहीं बल्कि देशभर के कई देशों की समस्या है यूनाइटेड किंगडम के ऑफिस का नेशनल स्टैटिसटिक्स की डाटा से पता चलता है कि घरेलू हिंसा के तीन पीड़ितों में से एक पुरुष हैl उक्त प्रकरण पर सरकार को संज्ञान लेकर एक संवैधानिक संस्था को अवश्य बनाना चाहिए
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