मैं पढ़ी लिखी लड़की बड़ी नाजों से थी पाली, अब नौकरी की तलाश में डिग्री ले भटक रही गली गली, लेकिन अब अपने मां बाबा के सर का भार हूं मैं, क्योंकि बेरोजगार हूं मैं, यह दुनिया समाज परिवार से खुद जंग लड़ती हूं, लेकिन अपने मुंह से कभी किसी को कुछ ना कहती हूं , मैं खुद अपने हालातो से ही लाचार हूं क्योंकि मैं बेरोजगार हूं। पड़ोसी रिश्तेदार सब कहते हैं इसकी शादी करवा दो , देख लड़का कोई अच्छा सा इसकी अब मांग भरवा दो, मैं लोगों के हीन भावनाओं और उनके नजर की दुत्कार हूं , क्योंकि मैं बेरोजगार हूं। अब मुझे अपने ही घर में भेदभाव देखने को मिलता है , मुझे जुठी रोटी दी जाती बड़ी बहन को पुड़ी दे मां का चेहरा खिलता हैं , क्या करूं पढ़ी लिखी हो कर भी मै बहुत लाचार हूं , क्योंकि मैं बेरोजगार हूं । देश में बेरोजगारी की ये दशा देखकर बहार जाने पर भी आती मुझको शर्म , अपनी कलम से आवाज उठाऊंगी इस बेरोजगारी के खिलाफ तोडूंगी कई भ्रम, एक अद्भुत लेखिका एक साहित्यकार हूं मैं । फिर भी बेरोजगार हूं मैं।
काजल कुमारी युवा लेखिका बिहार
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