कहां गये वो दिन
चुनावी कुरुक्षेत्र में गडित, भूगोल बताने में माहिर चाय पान की दुकान
सुजानगंज जौनपुर
क्षेत्र में इस चुनावी कुरुक्षेत्र में ऐसी बयार चल रही है कि चाय पान की दुकानें गडित भूगोल पढ़ाने लगी है। जहां गांव गांव की पगडंडियों पर चमचमाती कारों का काफिला धूल का गुब्बार उड़ता हुआ कारों का काफिला गांव में प्रवेश कर नव धनाढ्य घर के सामने एक बिन बुलाए मेहमान की भांति अपनी आओ भगत करा आगे निकल जाता है बगल में खड़े चकरी चाचा, रहीम भाई, छोटू पंडित धूल के गुब्बार की तरह अपनी भावनाओं को ऊपर उठाकर धीरे-धीरे मन मसोस कर रह जाते हैं कि काश हम भी मतदाता ना होकर एक संवेदना शून्य चापलूस होते जिसकी गोटी चारों तरफ फिट रहती हर राजनीतिक दल स्वाती के बूंद की तरह बिना पाये आस लगाए आता है और बादलों की गड़गड़ाहट सुन प्यासे पपीहा की तरह पी कहां पी कहां करता और हवा का झोंका आता और आसमान साफ हो जाता गरीबों के हक पर अभी भी तमाम बंदिशो के बावजूद बगुले के ध्यान लगाए बैठे हैं कि किस प्रकार गरीब के हक्क का निवाला उद्रस्त कर ले रही बात चुनावी चकलस् में बिना काम दिन भर व्यस्त रहने वाले राजनीतिक पंडित सर्वज्ञ विराजमान रहते है उनके लिए पूरा गांव के गांव मुट्ठी में रखने वाले बाक बहादुर अपने वाक्य जाल में प्रत्याशियों को ऐसा फसाते हैं कि वह सुबह, दोपहर, शाम तक पाला बदल गिरगिट को भी मात दे देते हैं चौराहे पर बैठा हर तीसरा चौथा चुनावी पंडित ही होता है बिना उसके ज्ञान एवं साथ के उसे क्षेत्र का भूगोल,गडित किसी को मालूम नहीं है मतदाता को अपना मत देना है वह चाहे जिस दल को दे इससे उन्हें कोई मतलब नहीं लेकिन एक दिन में गांव के गांव का माहौल बदल देना उनके बाएं हाथ का खेल होता है यह दर्शाकर अपनी श्री में वृद्धि कर अगले शिकार के लिए निकल लेते है पहले के चुनाव में प्रत्याशी या उसके प्रचारक व्यक्तिगत संबंधों के बल पर किसी मतदाता से अपने मन की बात मनवा लेते थे परंतु वर्तमान में डर एवं लोभ में अपने पाले में खड़ा करने की असफल कोशिश करते हैं मतदाताओं की स्थिति पर एक कवि ने सही कहा है। सुखे सर तड़पत जलज,बादर सींचत काशि। सागर सेवत स्वातिजल, चातक मरत पियास।
गंगेश बहादुर सिंह सुजानगंज जौनपुर
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